Wednesday, December 23, 2009

(४७)

है कड़वी ये, तीखी भी है,
रंग में कुछ खास नहीं हाला;
मेरा जीवन-तन-मन इसने,
है नष्ट भले ही कर डाला।

वायदा रहा मेरा, कि फिर भी
पीता जाऊँगा प्याला;
क्या है तुझमें समझेगा तेरा
प्रेमी ही, ओे मधुशाला।

No comments:

Post a Comment