Wednesday, December 23, 2009

(५३)

हैं पूछ रहे सब लोग यही,
क्यों खुद को पागल कर डाला;
इस दुनिया के दुख-दर्दों से,
क्यों अपने दिल को भर डाला।

मस्तिष्क मेरा है कुन्द हो
चुका, पी मानवता की हाला;
दर्दों का घर दिल बना, देख
दुख लोगों का इस मधुशाला।

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