Wednesday, December 23, 2009

(४९)

तिनके-तिनके चुनकर मैंने,
मदिरालय निर्मित कर डाला;
कोमल कलियों की पंखुडि़यों से
मैंने उसको भर ड़ाला।

पर जैसे ही मैंने हाथों में
थामा इक मधु का प्याला,
जाने क्यों नन्हें झोंके से ही
बिखर गयी थी मधुशाला।

No comments:

Post a Comment