Wednesday, December 23, 2009

(५१)

यदि मेरे मग के हर पग में,
प्रभु डालो काँटो की माला;
मैं पीकर पागल हो जाऊँ,
बस इतनी दे देना हाला।

चलता जाऊँगा मैं हँसकर,
रोये चाहे साकीबाला;
बिंधता है तो बिंध जाये तन,
पर मैं पहुँचूंगा मधुशाला।

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