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'सज्जन' की मधुशाला
Wednesday, December 23, 2009
(५६)
श्रद्धा, आदर, अनुराग और
चिर-आराधना की है हाला;
अब तो आ भोग लगा जाओ,
कब से बैठा हूँ भर प्याला।
हे मेरे गुरुदेव आपके
पावन चरणों को छूकर,
कब होगी कृत्कृत्य मेरी
यह नन्हीं-मुन्हीं मधुशाला।
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