Wednesday, December 23, 2009

(३०)

बूँद-बूँद कर सन्नाटा,
है टपक रहा बनकर हाला;
अंधकार ही घनीभूत हो,
आया है बनकर प्याला।

विधवाओं का सा वेश धरे,
है सिसक रही साकीबाला;
जग कहता मेरा भाग्य यही,
है ये ही मेरी मधुशाला।

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