Monday, December 21, 2009

(१७)

नये-नवेले जगमग करते,
कितने मदिरालय देखे;
ताँबे, चाँदी, सोने के मैंने,
कितने ही प्याले देखे।

पर न जाने क्यों मुझे जँचा,
वह नन्हा मिट्टी का प्याला;
और जाने क्यों मुझको जँचती,
वह टूटी फूटी मधुशाला।

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