Wednesday, December 23, 2009

(५७)

वीणा-वादिनि वह राग सुना,
नभ हो मधु के घन से काला;
और भू पर इतनी मात्रा में,
वे मधु-घन बरसायें हाला।

बह जायें सब मन्दिर-मस्जिद,
फूटे कंठी, टूटे माला;
हो खत्म धर्म, बस प्रेम बचे,
और बची रहें सब मधुशाला।

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